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Story
एक बूढ़ी काकी उनके पति देव को स्वर्ग सिधार बहुत समय हो गया था। बेटी भी जवान होकर चल बसे थे। उनके एक भतीजा था बुद्धिराम। बूढ़ी काकी ने अपनी सारी संपत्ति भतीजे के नाम कर दी थी। संपत्ति लिखते समय भतीजे ने वादा किया था कि वह बूढ़ी काकी की अच्छी तरह से देखभाल करेगा किन्तु वह अपनी जबान का पक्का नहीं रहा। उसकी पत्नी रूपा का व्यवहार भी काकी से अच्छा नहीं था। बूढ़ी काकी को भी लोग समय से भोजन भी नहीं देते थे। कहां कि बुढ़ापे में आदमी का बचपन लौट आता है। यही हाल बूढ़ी काकी का भी हो गया था। उन्हें समय पर भोजन न मिलता या बाजार से आई कोई चीज न मिलती तो वे गला फाड़कर बोली लगती। उनकी खाने की लालच बढती ही। बच्चे भी अपने माता पिता का रंग देखकर बूढ़ी काकी को सताया करते कोई चुटकी काटकर भागता कोई उन कुली कर देता। काकी चीख मारकर रोती। पूरे परिवार में बुद्धि राम की छोटी बेटी लाड़ली ही बूढ़ी काकी के प्रति प्रेम रखती थी। एक बार की बात है। बुद्धि राम की बड़ी लड़की का तिलक था। द्वार पर शहनाई बज रही थी। चार पायों पर मेहमान विश्राम कर रहे थे। घर की स्त्रियां गा रही थीं भट्टियों पर कड़ाह चढ़ी थी पूड़ी कटोरियां निकल रही थी मसाले मसालेदार तरकारी पक रही थी। पकवान की सुगंध चारों तरफ फैल रही थी।
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► All the characters, incidents, names, and situations used in this story are fictitious. The following video is suitable for a mature audience.
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